ये जो बे मौसम बारिश देख रहे हो

ये जो बे मौसम बारिश देख रहे हो



ये जो बे मौसम बारिश देख रहे हो
ये जो कुदरत का कहर देख रहे हो
रंग तो तुमने भी खूब बदले थे
और आज कुदरत को तुम कोस रहे हो


ये जो वायरस का दौर देख रह हो  
ये बता रहा  है खिलवाड़ तो तूने भी खूब किया है
और अब जब उसकी बारी आई तो तुम मुंह फेर रहे हो


ये जो फ़सलों को पानी मैं बहते देख रह हो
किसान रो रहा है उसका दर्द देख रहे हो
तुम तो घर में बैठे हो
वो 17 शहीद हुए
उनके घर का मातम देख रहे हो


कसूर तुम्हारा भी था धरती उजाड़ने में
पर उसका हिसाब देख रहे हो
ये लाशों का ढेर देख रहे हो
पर तुम तो छुप गयी खुद को बचाने को
सरहद पर खड़ा वो शक़श है उसका ज़ज़्बा देख रहे हो


और तुम कहते हो क़ुदरत रंग बदल रहा है
तुम्हारे तो मौसम बदले थे 
और अज्ज गिरगिट उसी बोल रहे हो..

by-Yash

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